◆ सीएमशिप की रेस में शामिल हुआ सत्ता का द्वार कांगड़ा ◆ लोअर हिमाचल से अप्पर क्लास का फेस आया सामने

चंद्रेश कुमारी, वो नाम जो दागी सियासत में भी बेदाग है। यह अलग बात है कि चन्द्रमा की तरह यह सियासत के आसमान पर कभी शुक्ल तो कभी कृष्ण पक्ष की तरह यह प्रकट और अदृश्य होती रहीं। मगर इनके वजूद को चन्द्रमा की तरह कोई भी नकार नहीं पाता है। इनकी सियासी आसमान पर मौजूदगी हमेशा रही है।

प्रदेश की राजनीति में विलुप्त हो चुके दो चंगर बहुल विधानसभा क्षेत्रों बमसन-थुरल के बाद धर्मशाला में सियासी रानी रह चुकी चंद्रेश ने बीती 2 फरवरी को सियासत में अपने 50 साल पूरे किए। मैडम ने बीते कल यह इशारा छोड़ा कि वह धर्मशाला के सियासी स्टेडियम में फिर बैटिंग के लिए उतर सकती हैं, बशर्ते सिर्फ और सिर्फ सोनिया गांधी उन्हें पिच पर उतरने का आदेश करें।

अब इस इशारे से सबसे पहले सबके दिमाग में एक ही बात आई कि क्या उनकी दावेदारी से सुधीर शर्मा का चेहरा उतरेगा ? पर जबाव यह है कि अकेले सुधीर शर्मा ही नहीं, उन तमाम चेहरों के उतरने की नौबत आ गई है जो आफ्टर वीरभद्र सिंह सीएमशिप की जंग में उतरने की सोच लेकर चले हुए हैं। इन चेहरों को बताने या गिनवाने की जरूरत नहीं है,क्योंकि जनता सबसे वाकिफ है।

जाहिर सी बात है कि धर्मशाला में कांग्रेस का हाल भी खराब है। चंद्रेश के दौर वाली तमाम कांग्रेसी जमात हाशिये से बाहर धकेली जा चुकी है। अनगिनत चेहरे आया राम-गया राम हो चुके हैं। जिन चेहरों को कांग्रेसी प्लेटफार्म से आया-गया किया जा चुका है वह तमाम अपनी सियासी पूंछ पर पांव रखने का गुनहगार सुधीर शर्मा को मानते हैं। जाहिर सी बात है कि अगर चंद्रेश कुमारी को सोनिया वापसी का हुक्म करती हैं तो यह तमाम कांग्रेसी पुनर्जीवित होंगे और चंद्रेश के साथ ताल ठोंकते नजर आएंगे। क्योंकि उनको सियासी रंजिश शर्मा से है न कि कांग्रेस से।

खैर,बात चली हुई थी, चंद्रेश और सीएमशिप को लेकर। चंद्रेश लोअर हिमाचल से हैं। राजपूत हैं, सबसे बड़ी बात की बेदाग छवि की मालिकन हैं। कांगड़ा से सीएम का मैसेज चलता है तो यह भी तय है कि कुल 15 सीटों पर तो इसका असर पड़ेगा। वजह है मौजूदा दौर में कांगड़ा के कांग्रेसियों में किसी एक का भी अभी तक ऐसा सियासी ओरा नहीं है कि वह सीएम के नाम पर खुद जीते और बकाया सीटों पर भी इसका असर डाल सके। हाल-फिलहाल तो हालात और हालत ऐसे हैं कि सब कांग्रेसियों को भाजपा के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर से ही आस है। खुद की काबलियत और संगठन की कमजोरी से सब डरे हुए हैं। ऐसे में चंद्रेश का नाम ऐसा बन कर उभरने शुरू हो गया है कि कृष्ण पक्ष में बैठे कैडर को भी शुक्ल पक्ष इसी में नजर आ रहा है।

चंद्रेश के नाम पर कोई बवाल भी होता नजर नहीं आ रहा। जो बकाया लीडर सीएम के पद पर नजरें गढ़ाए हुए है, वह तमाम 55-60 के बीच हैं। कुछ के पॉलिटकल बायोडाटा भले ही मजबूत हैं,मगर विभिन्न सियासी वजहों से वह कमजोर भी हैं। अगर कांग्रेस बहुमत के आंकड़े को छूती है तो यह भी तय है कि घमासान होगा। पॉलिटिकली इममेच्युर फेस आपस में भिड़ेंगे। जबकि चंद्रेश कुमारी को टिकट मिली, वह जीतीं,और कांग्रेस सरकार बनाने की पॉजिशन में आई तो यही चेहरा ऐसा होगा जो सबको मंजूर होगा। सबको यह तस्सली रहेगी कि मैं न बना तो क्या हुआ, वो भी नहीं बना। मैडम का सियासी स्वभाव भी ऐसा है कि हर किसी को यह लगेगा कि मैडम सीएम बनती हैं तो वह ही सीएम बनेगा। यह सियासत है, यहां हर कोई सहूलियत के लिहाज से चलता है। दूसरी ओर,हाईकमान को तो सत्ता के दरवाजे यानि कांगड़ा की चाबी जरूरी होगी। वैसे भी कांगड़ा में कांग्रेस हाईकमान के पास ट्राइड एंड टेस्टेड फेस कोई नहीं है,सिवाए चंद्रेश के। ज्यादातर चेहरों पर विवादों की गर्द लिपटी हुई है। मैडम के एक इशारे से लोअर हिमाचल यानि ऊना,हमीरपुर,चम्बा,मण्डी के बाद कांगड़ा भी मजबूती से रेस में आता दिख रहा है। बाकि आप खुद देख-परख लीजिए कि कांगड़ा में कौन सा ऐसा चेहरा है जो सीएम पद का चेहरा बनने की चमक-धमक रखता हो ! बाकि हम तो यही कह सकते हैं कि ज्यादातर कांग्रेसी अपने कल्चर की तरह गांधी फ़ैमिली के आगे शवासन में ही पड़े रहते हैं। आजकल के कई कांग्रेसी अपने राहुल बाबा तो कई अपनी प्रियंका दीदी के दरबार में चहक रहे हैं। इन्हें इतना ही इशारा काफ़ी होगा कि इनकी राजमाता सोनिया गांधी के दरबार की महक चंद्रेश कुमारी कई दशकों से बनी हुईं हैं। सो सावधान कांग्रेसी मित्रो, चंगर क्षेत्रों यानि बमसन-थुरल की रानी रह चुकी चंद्रेश कुमारी ने स्मार्ट सिटी वाले धर्मशाला में स्मार्टली गेम प्ले कर ही दी है। अब पत्ते फेंके हैं तो सोच समझ कर ही फेंके होंगे। चंद्रेश भी तो भयंकर श्रेणी की कांग्रेसी हैं। यह आईं हैं, कुछ बोला है तो राजमाता सोनिया के इशारे पर ही बोला होगा। क्लेश तो होगा ही,आखिर दावा भी तो चंद्रेश का है…

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Author: Jantak khabar