सोलन।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (HPU) पहले से ही आर्थिक संकट से गुजर रहा है, लेकिन समय पर काउंसिलिंग न होने के कारण इस बार विश्वविद्यालय को करोड़ों रुपये का भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है। बीएड कोर्स में इस वर्ष 2801 सीटें खाली रह गई हैं, जिसके चलते विश्वविद्यालय को लेवी चार्जेस और परीक्षा शुल्क से मिलने वाली बड़ी आय प्रभावित होगी।
हिमाचल प्रदेश में HPU के अधीन 54 निजी B.Ed कॉलेज हैं। हर विद्यार्थी से विश्वविद्यालय ₹7080 लेवी शुल्क और दो वर्षीय कोर्स के दौरान चार सेमेस्टर की परीक्षाओं के लिए ₹1300 प्रति सेमेस्टर लेता है। ऐसे में खाली सीटों के कारण सिर्फ लेवी और परीक्षा शुल्क से ही करीब ₹4 करोड़ का नुकसान संभावित है। इसके अतिरिक्त रजिस्ट्रेशन, माइग्रेशन और काउंसिलिंग फीस भी प्रभावित होगी।
SPU मंडी में भी 500 सीटें खाली
सिर्फ HPU ही नहीं, बल्कि सरदार पटेल विश्वविद्यालय (SPU) मंडी में भी लगभग 500 B.Ed सीटें रिक्त हैं। दोनों विश्वविद्यालयों में समयबद्ध काउंसिलिंग न होने, और NCTE दिशानिर्देशों के अनुसार एडमिशन प्रक्रिया में राहत न देने से यह स्थिति बनी है।
दूधारू कोर्स होने के बाद भी देरी
बीएड कोर्स को विश्वविद्यालयों की “दूधारू गाय” माना जाता है क्योंकि यहां से सबसे ज्यादा आय होती है।
लेकिन इस वर्ष एडमिशन प्रक्रिया बार-बार लटकती रही।
अन्य कोर्सों में जहां प्रवेश परीक्षा में छूट देकर एडमिशन खोले गए, वहीं B.Ed में यह निर्णय देर से हुआ और पर्याप्त छूट नहीं दी गई।
बीएड एसोसिएशन का कहना है कि
“विश्वविद्यालय अलग-अलग कोर्सों में अलग-अलग नियम लागू कर रहा है, जबकि B.Ed सबसे बड़ा रेवेन्यू कोर्स है। इसे तुरंत ओपन एडमिशन दिया जाए।”
SC-ST छात्रों को छात्रवृत्ति पर भी संकट
यदि जल्द ही प्रवेश परीक्षा में छूट देकर सीटें न भरी गईं, तो हजारों SC-ST छात्रों को छात्रवृत्ति से वंचित होना पड़ सकता है।
साथ ही इन कॉलेजों में कार्यरत सैकड़ों शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की नौकरियों पर भी खतरा मंडरा रहा है।
एक ही कोर्स, दो तरह के नियम
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SPU मंडी ने जीरो स्कोर वालों को भी B.Ed एडमिशन की छूट दी
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HPU ने केवल 10% अंकों की छूट दी
इससे एडमिशन संख्या पर नकारात्मक असर पड़ा है।
⭐ निष्कर्ष
हिमाचल के दोनों प्रमुख विश्वविद्यालयों में B.Ed सीटें खाली रहना न केवल
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शिक्षा व्यवस्था की कमजोरी उजागर करता है
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विश्वविद्यालयों की वित्तीय स्थिति
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छात्रों के भविष्य
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और हजारों कर्मचारियों की नौकरी
पर भी गंभीर असर डालता है।
बीएड कॉलेजों ने सरकार व विश्वविद्यालय प्रशासन से तुरंत हस्तक्षेप कर एडमिशन प्रक्रिया सरल बनाने की मांग की है।


























