चंडीगढ़। हरियाणा के आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार की संदिग्ध मौत (आत्महत्या) के मामले में चल रहे विरोध प्रदर्शनों के बीच चंडीगढ़ पुलिस ने एफआईआर में बदलाव करते हुए नई धाराएं जोड़ी हैं। यह कार्रवाई मृतक अधिकारी की पत्नी और IAS अधिकारी अमनीत पी. कुमार के अनुरोध पर की गई।
10 अक्टूबर को दोनों ने चंडीगढ़ के सीनियर सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (SSP) को पत्र लिखकर एफआईआर में “अनियमितताओं” की ओर ध्यान आकर्षित किया था और उसमें संशोधन की मांग की थी। उनका कहना था कि एफआईआर में एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धाराओं को “कमज़ोर” किया गया है और उसमें धारा 3(2)(v) जोड़ी जानी चाहिए।
रविवार, 12 अक्टूबर 2025 को चंडीगढ़ पुलिस के आईजी पुष्पेंद्र कुमार ने पुष्टि की कि एफआईआर में अब धारा 3(2)(v) को जोड़ा गया है। पहले यह मामला धारा 108, 3(5) (आत्महत्या के लिए उकसाने) और 3(1)(r) के तहत दर्ज किया गया था।
धारा 3(2)(v) के तहत यदि किसी अनुसूचित जाति या जनजाति व्यक्ति के खिलाफ कोई अपराध किया जाता है, जो 10 वर्ष या उससे अधिक की सजा से दंडनीय है, तो दोषी को आजीवन कारावास और जुर्माने की सजा दी जा सकती है।
इस बीच, 31 सदस्यीय समिति “जस्टिस फॉर वाई. पूरन कुमार” ने चंडीगढ़ में कड़ी सुरक्षा के बीच एक महापंचायत आयोजित की। समिति ने सरकार से मांग की कि हरियाणा के डीजीपी शत्रुजीत कपूर और पूर्व रोहतक एसपी नरेंद्र बिजारनिया को तुरंत गिरफ्तार किया जाए।
दोनों ही अधिकारियों के नाम पूरन कुमार द्वारा छोड़ी गई “फाइनल नोट” में दर्ज थे।
समिति के प्रवक्ता ने कहा — “डीजीपी को तुरंत पद से हटाया जाए। अगर 48 घंटे में कार्रवाई नहीं होती, तो समिति अगला कदम तय करेगी।”
सदस्य गुरमेल सिंह ने कहा कि अब तक मामले की कोई ठोस जांच नहीं हुई है और उन्होंने न्यायिक जांच की मांग की।
पूरन कुमार के परिवार ने भी इस दौरान भीड़ को संबोधित करते हुए न्याय की लड़ाई में सहयोग की अपील की।
अभी तक अधिकारी का पोस्टमार्टम नहीं हो सका है, क्योंकि परिवार ने सहमति देने से इनकार किया है।
इस पर चंडीगढ़ डीजीपी सागर प्रीत हूडा ने कहा कि “परिवार की कुछ चिंताएं हैं, जिन पर चर्चा चल रही है।”
52 वर्षीय पूरन कुमार आईजीपी (पुलिस प्रशिक्षण केंद्र, सुनारिया, रोहतक) में तैनात थे। उनकी मौत की जांच के लिए एक स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम (SIT) भी गठित की गई है।
“फाइनल नोट” में पूरन कुमार ने आठ वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के नाम लिखे हैं, जिनमें डीजीपी कपूर और बिजारनिया शामिल हैं। उन्होंने आरोप लगाया था कि इन अधिकारियों ने उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित और बदनाम किया, जिससे उन्होंने यह कदम उठाया।


























